दाब्बतुल अर्द का निकलना
यह एक अजीब शक्ल का जानवर है जो कोहे सफा से निकलेगा तमाम शहरो में बहुत जल्द फिरेगा फसाहत से कलाम करेगा उसके हाथ में हज़रत मूसा का असा और हज़रत सुलेमान की अंगूठी होगी, असा से मुसलमान के माथे पर एक चमकदार निशान लगायेगा और अंगूठी से काफिर के माथे पर काला धब्बा। उस वक़्त तमाम मुस्लिम व काफिर अलानिया जाहिर लेने बाली खुल्लम खुल्ला पहचाने जायेंगे यह निशानी कभी नही बदलेगी जो कभी भी हरगिज ईमान न लायेगा और जो मुसलमान है हमेशा ईमान पर क़ायम रहेगा।
*हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की वफात के बाद जब क़यामत आने को सिर्फ चालीस बरस रह जायेंगे तब एक ठंडी खुशबूदार हवा चलेगी जो लोगो की बगलो के नीचे से गुजरेगी जिसका असर यह होगा कि मुसलमान की रूह निकल जायेगी और काफिर ही काफिर रहे जायेंगे उन्ही काफिरो पर क़यामत आयेगी।*
यह चन्द निशानियं बयान की गई उनमे से बाज जाहिर हो चुकी हैं और कुछ बाकी हैं जब निशानियाँ पूरी हो जायेगी और मुसलमानो की बगलो से वह ख़ुश्बूदार हवा गुजरेगी जिस से तमाम मुसलमानो की वफात हो जायेगी तो उसके बाद फिर चालीस बरस का जमाना ऐसा गुजरेगा जिस में किसी की औलाद न होगी यानी चालीस बरस से कम उम्र का कोई न रहेगा और दुनिया में काफिर ही काफिर होंगे। अल्लाह कहने वाला कोई न होगा कोई अपनी दीवार लीपता होगा कोई खाना खाता होगा गरज सब अपने अपने काम में लगे होंगे कि एकाएक अल्लाह तआला के हुक्म से हज़रत इसरफील अलैहिस्सलाम सूर फूकेंगे पहले उसकी आवाज हल्की होगी बाद में धीरे धीरे बहुत कड़ी हो जायेगी लोग कान लगाकर उसकी आवाज सुनेंगे और बेहोश होकर गिर पड़ेंगे और मर जायेंगे फिर आसमान, जमीन, दरिया, पहाड़ यहा तक कि खुद सूर और इसराफील और तमाम फ़रिश्ते फना हो जायेंगे
*उस वक़्त सिवा अल्लाह वाहिद हकीकी के कोई न होगा फिर जब अल्लाह तआला चाहेगा इसराफील अलैहिस्सलाम को जिन्दा करेगा और सूर को पैदा करके दोबारा फूकने का हुक्म देगा सूर फूकते ही तमाम अव्वलीन व आखरीन, फ़रिश्ते, इन्सान, जिन, हैवानात सब मौजूद हो जायेंगे और हशर के मैदान में लाये जायेंगे, यहां हिसाब व जजा के इंतेजार में खड़े होंगे जमीन तांबे की होगी सूरज नेहायत तेजी पर सर से बहुत करीब होगा, गर्मी की सख्ती से भेजे खौलते होंगे जबाने सूख कर कांटा हो जायेंगी, बाजों की मुहं से बाहर निकल आयेंगी, पसीना बहुत आयेगा, किसी के टखने तक किसी के घुटने तक किसी के गले तक किसी के मुहं तक जिसका जैसा अमल होगा*
वैसी ही तकलीफ होगी फिर पसीना भी नेहायत बदबूदार होगा इसी हालत में बहुत देर हो जायेगी। पचास हजार बरस का तो वह दिन होगा और इसी हालत में आधा गुजर जायेगा। लोग सिफारिशी तलाश करेंगे जो इस मुसीबत से छुटकारा दिलाये और जल्द फेसला हो, *सब लोग मशवरा करके हज़रत आदम के पास जायेंगे वह फरमायेंगे हज़रत नूह के पास जाओ वह हज़रत इब्राहिम के पास भेजेंगे हज़रत इब्राहिम हज़रत मूसा के पास जाने को कहेंगे हज़रत मूसा हज़रत ईसा के पास भेजेंगे हज़रत ईसा हमारे आका व मौला रहमते आलम सरदारे अम्बिया मोहम्मद मुस्तफा अलैहिस्सलाम के पास भेजेंगे* जब लोग हमारे हुज़ूर से फरियाद करेंगे और शफाअत की दरख्वास्त लायेंगे तो हुज़ूर फरमायेंगे कि में इसके लिये तैयार हुॅ
यह फरमा कर बारगाहे एलाही में सजदह करेंगे।
*अल्लाह तआला फरमायेगा ऐ मोहम्मद सर उठाओ कहो सुना जायेगा मांगो पाओगे शफाअत करो कुबूल की जायेगी।* अब हिसाब शुरू होगा मीजाने अमल में आमाल तौले जायेंगे अपने ही हाथ पाँव बदन के आजा अपने खेलाफ गवाही देंगे जमीन के जिस हिस्से पर कोई अमल किया था वह भी गवाही देने को तैयार होगा न कोई यार होगा न मददगार न बाप बेटे के काम आवे न बेटा बाप के, आमाल पूछे जा रहें हैं जिन्दगी भर का सब किया हुआ सामने है न गुनाह से इन्कार कर सकता है न कहीं से नेकियाँ मिल सकती है
*इस बेकसी के वक़्त में दस्तगीर बे कसां हुज़ूर पुर नूर महबूबे खुदा मोहम्मद मुस्तफा सल्लाहो अलैहे वसल्लम काम आयेंगे और अपने मानने वालो की शफाअत फरमायेंगे,*
हुज़ूर की शफाअत कई तरह की होगी बहुत से लोग आपकी शफाअत से बे हिसाब जन्नत में दाखिल होंगे और बहुत से लोग जो दोजख के लायक होंगे हुज़ूर की सेफारिश से दोजख से बच जायेंगे और जो गुनाहगार मुसलमान दोजख में पहुँच चुके होंगे वह हुज़ूर की शफाअत से दोजख से निकाले जायेंगे, जन्नतियों की शफाअत करके उनके दर्जे बुलन्द करायेंगे हुज़ूर के अलावा बाकी अम्बिया, सहाबा, ओलमा, औलिया, शोहदा हुफ्फाज, हुज्जाज भी शफाअत करेंगे।
लोग ओल्मा को अपने तअल्लुकात याद दिलायेंगे अगर किसी ने आलिम को दुनिया में वज़ू के लिये पानी लाकर दिया होगा तो वह भी याद दिला कर शफाअत के लिये कहेगा और वह उसकी शफाअत करेंगे।
यह क़यामत का दिन जो हजार बरस का दिन होगा जिस की मुसीबतें बे शुमार व ना काबिले बर्दाश्त होंगी यह दिन अम्बिया औलिया सालेहीन के लिये इतना हल्का कर दिया जायेगा कि मालूम होगा इसमें इतना वक़्त लगा जितना एक वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ में लगता है बल्कि इससे भी कम यहां तक कि बाजो के लिये तो पलक झपकने में सारा दिन तय हो जायेगा।
सबसे बड़ी नेमत जो मुसलमानो को उस दिन मिलेगी वह अल्लाह तआला का दीदार होगा। यहाँ तक तो हशर के मुख्तसर हालात बयान किये गये।
अब इसके बाद आदमी को हमेशगी के घर जाना है किसी को आराम का घर मिलेगा जिस के ऐश व आशाइश की कोई इंतेहा नही इसको जन्नत कहते हैं। किसी को तकलीफ के घर में जाना पड़ेगा जिसकी तकलीफ की कोई हद नही उसे जहन्नम और दोजख कहते हैं। इनका इन्कार करने वाला काफिर है। जन्नत दोजख बन चुकी है और अब मौजूद है यह नही की क़यामत के दिन बनाई जायेगी। क़यामत, हशर, हिसाब, सवाब, अजाब, जन्नत, दोजख सब के वही मानी हैं जो मुसलमानों में मशहूर हैं
लेहाजा जो आदमी इन चीजो को तो हक कहे मगर इनके मानी कुछ और कहे मसलन यह कहे कि सवाब के मानी अपनी नेकियो को देखकर खुश होना और अज़ाब के मानी अपने बुरे अमल को देखकर रन्ज करना या हशर फकत रूहों का होगा बदन का नही तो ऐसा आदमी हक़ीकत में इन चीजों का मुन्किर है वह काफिर है क़यामत बेशक जरूर काएम होगी इसका इन्कार करने वाला काफिर है।
हशर रूह और जिस्म दोनों का होगा जो कहे सिर्फ रूहें उठेंगी जिस्म जिन्दा न होंगे वह भी काफिर है दुनिया में जो रूह जिस बदन में थी उस रूह का हशर उसी बदन में होगा ऐसा नही कि नया बदन पैदा करके उसमे रूह डाली जायेगी। बदन के अज्जा अगरचे मरने के बाद इधर उधर हो गये और जानवरो की खूराक हो गये मगर अल्लाह तआला उन सब अज्जा को जमा करके क़यामत के दिन उठायेगा। हिसाब हक है, आमाल का हिसाब होगा, हिसाब का मुन्किर काफिर है।
📕 कानूने शरीअत
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