क़िरअ्त यानी कुअरान शरीफ पढ़ने में इतनी आवाज़ होनी चाहिए कि अगर बहरा न हो और शोरो गुल न हो तो खुद अपनी आवाज़ सुन सके अगर इतनी आवाज़ भी न हुयी तो क़िरअत नहीं हुयी और नमाज न होगी । ( दुर्रे मुख्तार जिल्द १ सफहा ३५ ९ )
मसअ्लह (1) फ़ज्र में और मग़रिब व इशा की ईदैन व तरावीह और रमज़ान की वित्र में इमाम पर जेहर के साथ किरअत करना वाजिब है और मग़रिब की तीसरी रकअत में और इशा की तीसरी और चौथी रफ़अत में और जुहर व अस्र की सब रकअतों में आहिस्ता पढ़ना वाजिब है ।
(2) जेहर् के मानी हैं कि इतनी ज़ोर से पढ़े कि कम से कम सफ में करीब के लोग सुन सकें और आहिस्ता पढ़ने के यह मानी हैं कि कम से कम खूद सुन सके ।
( दुर्रे मुख्तार )
(3) जेहरी नामाजों में अकेले को इख्तियार है चाहे ज़ोर से पढ़े चाहे आहिस्ता मगर जोर से पढ़ना अफ़जल है ।
( दुर्रे मुख्तार )
(4) कुअरान शरीफ़ उल्टा पढ़ना मकरूहे तहरीमी है मस्लन् यह कि पहली रकअत में कुल हुवल्लाह और दूसरी में तब्बत् यदा पढ़ना ।
( दुरै मुख्तार जिल्द १ सफहा ३६८ )
(5) दरमियान से कि छोटी सूरह छोड़कर पढ़ना मकरूह है जैसे पहली में कुल हुवल्लाह और दूसरी में कुल अऊजु बिरब्बिन्नास पढ़ी और दरमियान में सिर्फ एक सूरह कुल अऊजु बिरब्बिल फ़लक़ छोड़ दी , लेकिन हां अगर दरमियान की सूरह पहले से बड़ी हो तो दरमियान में एक सूरह छोड़कर पढ़ सकता है ।
( दुरे मुख्तार जिल्द १ सफहा ३६८ )
0 تبصرے
اپنا کمینٹ یہاں لکھیں