जमाअ़त व इमामत का बयान ‎/ ‏Jamaat ‎aur ‎imamat ‎ka ‎bayan

जमाअ़त व इमामत का बयान :-

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमेशा जमाअत के साथ नमाज पढ़ी है और सहाबा - ए - किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को भी हमेशा नमाज़ बा - जमाअ़त पढ़ने की ताकीद फरमायी है । हदीस शरीफ में है कि जमाअ़त के साथ नमाज़ पढ़ना अकेले नमाज़ पढ़ने से सत्ताइस ( 27 ) दर्जा ज्यादा फ़ज़ीलत रखता है । ( मिश्कात )
मसअ्लह :- (1) मर्दो को जमाअ़त के साथ नमाज़ पढ़ना वाजिब है , बिला उज्र एक बार भी जमाअ़त छोड़ने वाला गुनहगार और सजा के लाएक़ है और जमाअ़त छोड़ने की आदत डालने वाला फासिक़ है जिस की गवाही कुबूल नहीं की जायेगी और बादशाहे इस्लाम उस को सख्त सज़ा देगा और पड़ोसियों ने सकूत किया तो वह भी गुनाहगार होंगे । ( रद्दुल्मुख्तार जिल्द १ सफहा ३७१ )
(2) जुम्आ़ व ईदैन में जमाअ़त शर्त है यानी बगैर जमाअ़त यह नमाज़ें नहीं होंगी । तरावीह में जमाअ़त सुन्नते किफाया है यानी मुहल्ले के कुछ लोगों ने जमाअ़त से पढ़ी तो सब के जिम्मे से जमाअ़त छोड़ने की बुराई जाती रही और अगर सब ने जमाअ़त छोड़ दी तो सब ने बुरा किया । रमज़ान शरीफ में वित्र को जमाअ़त से पढ़ना मुस्तहब है । सुनतों और नफ्लों में जमाअ़त मकरूह है । ( रदुल्मुख्तार जिल्द १ सफहा ३७१ )(3) अकेला मुक़तदी मर्द अगरचे लड़का हो इमाम के बराबर दाहनी तरफ़ खड़ा हो , बायीं तरफ़ या पीछे खड़ा होना मकरूह है । दो मुक़तदी हों तो पीछे खड़े हो इमाम के बराबर खड़ा होना मकरूहे तन्जीही है । दो से ज्यादा का इमाम के बगल में खड़ा होना मकरूहे तहरीमी है ।
(4) पहली सफ़ में और इमाम के करीब खडा़ होना अफ़ज़ल है लेकिन नमाज़े जनाज़ा में पिछली सफ़ में अफज़ल है । ( दुरै मुख्तार जिल्द १ सफहा ३८3)
(5) इमाम होने का सब से ज्यादा हक़दार वह आदमी है जो नमाज़ व तिहारत वगैरह के अहकाम सब से ज्यादा जानता हो , फिर वह आदमी जो क़िरअत का इल्म ज्यादा रखता हो , अगर कई आदमी इन बातों में बराबर हो तो वह आदमी ज्यादा हकदार है जो ज्यादा मुत्तक़ी हो अगर इसमें भी बराबर हो तो ज्यादा उम्र वाला , फिर जिस के अख्लाक़ ज़्यादा अच्छे हों . फिर ज्यादा तहज्जुदगुज़ार गर्ने कि चन्द आदमी बराबर दर्जे के हों तो उनमें जो शरई हैसियत से फौकियत रखता हो वही ज्यादा हक़दार है । (दुर्रे मुख्तार जिल्द 1सफहा 373 ) (6) फ़ासिक़ मोअ्लिन जैसे शराबी , ज़िनाकार , जुआरी , दाढ़ी मुंडाने वाला या कटा कर एक मुश्त से कम रखने वाला इन लोगों को इमाम बनाना गुनाह है और इन लोगों के पीछे नमाज़ मकरूहे तहरीमी है और नमाज़ दुहराना वाजिब है । ( दुरे मुख्तार )
(7) राफ्जी , खारजी और दूसरे तमाम बदमज़हबों के पीछे नमाज़ पढ़ना नाजाइज़ व गुनाह है । अगर गलती से पढ़ली तो फिर से पढ़े अगर दूबारा नहीं पढ़ेगा तो गुनहगार होगा ।

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