मनक़बत ए इमाम हुसैन (रदिअल्लाहुअन्हु)
ताजुश्शरीया हज़रत अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खाँ कादरी रज़्वी अज़हरी बरेलवी (अलैहिर्रहमा) का लिखा हुआ प्यारा कलाम:
शहंशाहे शहिदाँ हो, अनोखी शान वाले हो
हुसैन इब्नेअली तुमपर शहादत नाज़ करती हैं
शुजाअत नाज़ करती है जलालत नाज़ करती हैं
वो सुल्ताने ज़माँ हैं उनपे शौकत नाज़ करती हैं
सदाकत नाज़ करती हैं, अमानत नाज़ करती हैं
हमीय्यत नाज़ करती हैं, मुरव्वत नाज़ करती हैं
शहें खुबाँ पे हर खुबी ओ खसलत नाज़ करती हैं
करीम ऐसे हैं वो उनपर करामत नाज़ करती हैं
जहानें हुस्न में भी कुछ निराली शान हैं उनकी
नबी के गुल पे गुलज़ारों की ज़ीनत नाज़ करती हैं
बिठा के शाने अक्दस पे करदी शान दोबाला
नबी के लाड़लों पर हर फज़ीलत नाज़ करती हैं
जबीने नाज़ उनकी जल्वा गाहे हुस्न हैं किसकी
रुखे ज़ेबा पे हज़रत की मलाहत नाज़ करती हैं
निगाहे नाज़ से नक्शा बदल देते हैं आलम का
अदाए सरवरे खुबाँ पे नुदरत नाज़ करती हैं
खुदा के फज़्ल से अख्तर मैं उनका नाम लेवा हुँ
मैंहुँ किस्मत पे नाज़ाँ मुझपे किस्मत नाज़ करती हैं
(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)
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