अंतिम पैग़म्बर और नराशंस
डॉ पंडित वेदप्रकाश उपाध्याय अपनी किताब "नरासंश और अंतिम ऋषि" के शुरू में लिखते हैं
"ऐतिहासिक विषयों पर शोध करने की मेरी उत्कट अभिलाषा सदैव रहती हैं। वेदों में, बाइबिल में, तथा बौद्ध ग्रन्थों में अंतिम ऋषि के रूप में जिसके आने की घोषणा की गई थी, वह मोहम्मद साहब ही सिद्ध होते थे, अतः मेरे अन्तःकरण ने मुझे वह प्रेरणा दी कि सत्य को खोलना आवश्यक हैं, भले ही वह लोगों को बुरा लगने वाला हो।"
नाराशंस:
"वेदों में बारह पत्नी वाले एक उष्ट्रारोही व्यक्ति के होने की भविष्यवाणी हैं, जिसका नाम "नाराशंस" है।
नाराशंस का अर्थ सायण ने किया है, कि जो मनुष्यो द्वारा प्रशंसित हो। मेरे विचार इस स्थल में सायण से सहमत नहीं क्योंकि मेरे मत से नराशंस शब्द ऐसे नर अर्थात व्यक्ति का सूचक हैं जो प्रशंसित हो।
"मोहम्मद" शब्द "नराशंस" का अरबी अनुवाद है। प्रस्तुत पुस्तक में मैंने यथाशक्ति सत्य को उदघाटित करने का प्रयत्न किया है। पाठकों से निवेदन है, कि पुस्तक पर अपने विचार आवश्थ भेजे।"
(नरासंश और अंतिम ऋषि, भूमिका)
नराशंस शाब्दिक का अर्थ:
"नराशंस" शब्द "नर" और "आशंस" दो शब्दों से मिलकर बना है। नर का अर्थ होता है मनुष्य और आशंस का अर्थ होता है प्रशंसित। (Praised)
यह स्मरणीय है, कि आशंस शब्द वैदिक भाषा का शब्द है, न कि लौकिक भाषा का।
नराशंस शब्द का कुछ लोग अर्थ करते हैं— मनुष्य की प्रशंसा तथा कुछ लोगों के अनुसार नराशंस शब्द का अर्थ होता है— मनुष्यो द्वारा प्रशंसित। प्रथम अर्थ पष्ठी तत्पुरुष समास से निकलता है तथा दूसरा अर्थ तृतीया तत्पुरुष समास से निकलता है।
नराशंस शब्द स्वतः ही इस बात को स्पष्ट कर देता है, कि प्रशंसित शब्द जिसका विशेषण है, वह मनुष्य हैं।
("नरासंश और अंतिम ऋषि", प्रथम अध्याय, पेज: 4)
(भाग 2.) जारी.....
मोहम्मद इमामुद्दीन राज़वी
मेम्बर: पैगाम-ए-अमन रिसर्च कमेटी
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